26 जुलाई 2010

आईबीएन-७ का ये मदारीपन!

दफ्तर में बस पहुंचा ही हूं कि आईबीएन-७ पर चलती एक 'न्यूज स्टोरीÓ टीवी पर चलती दिखती है। स्टोरी है राजस्थान के सीकर की। कुएं में गिरे एक बैल को बचाने केलिए एक डाक्टर को कुएं में उतारा जाता है। मकसद है कि डाक्टर बैल को इंजेक्शन लगाकर बेहोश कर दे। इसकेबाद बेहोश बैल को रस्से या चेन आदि से बांध कर बाहर खींच लिया जाए। बचाव कार्य के लिए डाक्टर बांस की सीढ़ी से कुएं में उतरता है। घंटों से कुएं में फंसा बैल जाहिर तौर पर घबराया हुआ है। यूं भी बैल तो आखिर 'बैलÓ ही है। घबराहट-बौखलाहट मेंं डाक्टर पर ही हमला कर देता है। हमले में डाक्टर गंभीर रूप से घायल हो जाता है। उसे आईसीयू में भर्ती कराना पड़ता है। ऐसा फुटेज किसी का भी ध्यान आकर्षित करेगा। स्टोरी टीवी पर चलेगी तो जाहिर तौर पर लोग उसे आंखें फाड़कर देखेंगे। इसके बावजूद चैनल ने इस स्टोरी को जिस मदारीपन के साथ दिखाया उसपर तो चैनल वालों के दिमाग पर तरस खाने के अलावा कुछ नहीं किया जा सकता।
स्टोरी को टाइटिल दिया गया 'आ बैल मुझे मारÓ। क्या बेहूदापन है यह। क्या बैल को बचाने वाला डाक्टर निरा अनपढ़ और बुद्धिहीन था। क्या उसे पता नहीं था कि बैल का क्या स्वभाव होता है? क्या उसे पता नहीं था कि कुएं में उतरना खुद अपनी जान जोखिम में डालना है। इसके बावजूद वह बैल को बचाने केलिए उसे इंजेक्शन लगाने कुएं में उतरता है। फुटेज देखकर साफ लगता है कि डाक्टर अगर चाहता तो बैल का मिजाज देखते ही सीढ़ी से वापस ऊपर चढ़ सकता था, पर उसने ऐसा नहीं किया। वह बैल को बेहोश करने की जद्दोजहद करता रहा और इस दौरान बैल केहमले की चपेट में आकर बुरी तरह घायल हो गया। डाक्टर की इस दिलेरी और बैल के प्रति उसके दया भाव के बदले चैनल के 'बुद्धिजीवीÓ पत्रकारों ने उलटे उसे एक निरे मूर्ख की तरह प्रोजेक्ट किया, मानो वह बैल को बचाने नही जानबूझ कर खुदकुशी करने कुएं में उतरा हो कि आ 'आ बैल मुझे मारÓ। स्टोरी के शीर्षक का अर्थ तो कम से कम यही निकलता है।
दरअसल मीडिया के रुटीन प्रैक्टिस बन चुकी इस तरह की कलंदरबाजी ही आए दिनों उसकी फजीहत और मलामत की वजह बन रही है। लोग चैनल वालों के मुंह पर थूक रहे हैं, पर उन्हें इससे न कोई फर्क है न फुर्सत। बैल से जुड़ी स्टोरी देख न्यूज रूप में बैठे 'महाकाबिलÓ पत्रकार केदिमाग में 'आ बैल मुझे मारÓ का मुहावरा फ्लैश कर गया। दिमाग की अपनी सीमाएं होती हैं भई! इससे आगे उसकी बुद्धि जा ही नहीं सकती। आखिरकार उसे बैठाया ही गया है लच्छेदार शब्दों में डॉयलॉगनुमा स्टोरी लिखने और उस पर अनुप्रास में डूबी 'चमत्कारिकÓ और 'मारकÓ हेडिंग लगाने केलिए। कंबख्त ने बड़ी शिद्दत से अपना काम किया। कर्ताधर्ताओं को भी स्टोरी काफी 'मजेदारÓ लगी, सो ऑन एयर कर दी गई तुरत-फुरत में। यह बात और है कि स्टोरी को उसकेसही एंगिल से भी उठाया जा सकता था, पर इसके लिए पत्रकारिता केएथिक्स की समझ चाहिए। स्टोरी से लोगों पर पडऩे वाले प्रभाव और खुद चैनल की छवि पर पडऩे वाले असर के बारे में सोचने का वक्त चाहिए। बस दिक्कत यहीं आती है। वक्त ही तो नहीं है शायद आज मीडिया के कर्ताधर्ताओं केपास और सोचने-समझने का विवेक तो दौड़-भाग भरे वर्क कल्चर ने यूं ही हर लिया है। लिहाजा चला दी स्टोरी 'लीडÓ लेने केलिए, लोग हंसें तो हंसते रहें। आखिर हंसना सेहत केलिए खासा फायदेमंद जो है। कितनी 'नेकÓ सोच है आईबीएन-७ वालों की। है न!!!