tag:blogger.com,1999:blog-7725912301696724249.post8116217825418263541..comments2023-04-05T15:05:21.148+05:30Comments on कोलाहल: चिरकुटों के चंगुल में हिन्दी- 2atmahttp://www.blogger.com/profile/15485114288094794179noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-7725912301696724249.post-10933714636727480612009-06-07T11:01:12.198+05:302009-06-07T11:01:12.198+05:30हिन्दी के मठाधीशों ! सुन रहे हो !!
"क्या कोई...हिन्दी के मठाधीशों ! सुन रहे हो !!<br /><br />"क्या कोई ऐसी सहृदयता नहीं दिखा सकता कि अपने उपन्यास या संग्रह में अपने साथ एक नए लेखक की कहानी, कविताएं आदि भी छापे । मेरा अपना मानना है कि हिन्दी की दुर्दशा पर आंसू बहाने के बजाय अगर बड़े लेखक ऐसी कोई पहल करें तो हिन्दी का कुछ तो भला हो ही सकता है । वर्ना किताब छपवाने में प्रकाशकों के चक्कर लगाते-लगाते नए लेखकों की चप्पलें घिस जाती हैं ।...&गिरिजेश राव, Girijesh Raohttps://www.blogger.com/profile/16654262548719423445noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7725912301696724249.post-70572503418042543442009-06-07T10:32:53.119+05:302009-06-07T10:32:53.119+05:30खरी-खरी।खरी-खरी।Anil Pusadkarhttps://www.blogger.com/profile/02001201296763365195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7725912301696724249.post-42088706315040271932009-06-06T22:43:14.951+05:302009-06-06T22:43:14.951+05:30चिरकुट को साहित्यकार बनने में समय लगता है और साहित...चिरकुट को साहित्यकार बनने में समय लगता है और साहित्यकार तो महान मरणोपरांत ही होता है:)चंद्रमौलेश्वर प्रसादhttps://www.blogger.com/profile/08384457680652627343noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7725912301696724249.post-6596961267423304872009-06-06T15:51:15.939+05:302009-06-06T15:51:15.939+05:30सही बातसही बातमहेन्द्र मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/00466530125214639404noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7725912301696724249.post-24972070005849004592009-06-06T15:33:00.994+05:302009-06-06T15:33:00.994+05:30आपने कितनी सही बात कितनी बेबाकी से कही् नहीं तो इस...आपने कितनी सही बात कितनी बेबाकी से कही् नहीं तो इस मुद्दे पर कम ही लेखक बोलते हैम वरिष्ठ लेखक तो कभी भी इस विश्य को उठाना नहीम चाहतेक्यों कि उन्हें रायल्टी मिल ही रही है मुझे लगता है इस ओर सरकार क ध्यान दिलवाना भी जरूरी है हिन्दी के उत्थान के लिये तभी कुछ किया जा सकता है अग्र इस लेखन के क्षेत्र् मै अधिक लोगों की भागी दारी हो और सरकार देश के इस चौथे स्तँभ की ओरे कुछ ध्यान देपुस्तकें ना छ्प पाने सेनिर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.com