21 दिसंबर 2010

बिछाया बंदरबांट का एक और जाल

पौने दो लाख करोड़ रुपये के २जी स्पेक्ट्रम घोटाले का शोर अभी संसद की फिजाओं में गूंज ही रहा था कि सैकड़ों-हजारों करोड़ की एक और बंदरबांट का जुगाड़ बैठाने की एक और खबर सामने आ गई। 'खाने-पकानेÓ की यह नई स्कीम लांच की है कर्मचारियों के पीएफ और पेंशन का लेखा-जोखा रखने वाले कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने। संगठन ने घोषणा की है कि पीएफ के बंद पड़े खातों पर वह अप्रैल से ब्याज नहींं देगा। अफसोस की बात यह है कि 'सुधारÓ के नाम पर फैलाई गई इस तिकड़म पर संसद में कोई सुगबुगाहट तक नहीं हुई। कामगारों के हितों की झंडाबरदारी का दम भरने वाले वामपंथियों ने भी इस 'साजिशी सयानेपनÓ पर चूं तक नहीं की।
यह कदम जिस शातिराना ढंग से और जिन भौंड़े तर्कों के आधार पर उठाया गया है, वह वाकई चौंकाने वाला है। ईपीएफओ का कहना है कि इन खातों के प्रबंधन में उसे बड़ी दिक्कत होती है, इसलिए वह इन खाातों पर ब्याज देना बंद करने जा रहा है। हैरत इस बात पर होती है कि सीधे तौर पर करोड़ों-करोड़ पढ़े-लिखे लोगों की सामाजिक सुरक्षा से जुड़े मामले में खुलेआम ऐसी कलंदरबाजी भला कैसे की जा सकती है, वह भी एक लोकतंत्र में! यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि जिन दो करोड़ खातों (जिनमें तीन साल से अंशदान नहीं मिल रहा है) को संगठन 'सिरदर्दÓ बता रहा है, वह उसके कुल सवा ५.८० करोड़ खातों के एक तिहाई से भी ज्यादा बैठते हैं। जब ऐसे खातों की तादाद इतनी बड़ी है तो ईपीएफओ उन्हें यूं सेत-मेत में लेकर कैसे चल सकता है। खासकर तब, जबकि वह अपने वित्तीय प्रबंधन के लिए बाकायदा चार-चार कंपनियों की सेवाएं ले रहा है और इन कंपनियों को इस काम के लिए मोटा भुगतान मिल रहा है। यह कंपनियां भी कोई छोटी-मोटी नहीं, बल्कि आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल, एचएसबीसी, रिलायंस कैपिटल और एसबीआई कैपिटल जैसी बड़ी और प्रोफेशनल कंपनियां हैं। जो कंपनियां कोष के प्रबंधन के लिए भारी-भरकम भुगतान ले रही हों वह भला यह कैसे कह रही हैं कि उन्हें दिक्कत आ रही है। खातों का प्रबंधन अगर दिक्कत भरा काम न होता, तो भला उनकी सेवाएं ली ही क्यों जा रही होतीं। क्या भविष्य निधि संगठन इतना नाकारा है कि वह इन कंपनियों डपट तक नहीं पा रहा कि बहानेबाजी बिना वह ठीक से अपना काम करें।
सारे मामले को देखकर सहज रूप से यही बात समझ में आती है कि 'दिक्कतÓ की बात एक तिकड़म केतहत उछाल कर दो करोड़ खातों का ब्याज बंद करने का 'खेलÓ किया जा रहा है। बहानेबाजी के इस ढोल में पोल यह नजर आता है कि ब्याज न देने की घोषणा के बावजूद इन खातों के पैसों का इस्तेमाल ब्याज कमाने में किया जाता रहेगा। फर्क महज इतना होगा कि लाखों करोड़ की इस राशि के ब्याज के रूप में मिलने वाले पैसे खाताधारकों के खाते में नहीं पहुंचेंगे। सालाना हजारों करोड़ की इस राशि को खिलाड़ी ही आपस में बांट खाएंगे। ब्याज बंद करने से सालाना ४०० करोड़ रुपये की 'बचतÓ की जो बात कही जा रही है, वह भी हास्यास्पद है, यदि इसकी तुलना इन खातों की राशि पर मिलने वाले ब्याज से की जाए।
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि ९.५ फीसदी ब्याज देकर संगठन कोई बड़ा असंभव काम नहीं रहा है। जिन कंपनियों को उसने अपने वित्तीय प्रबंधन का ठेका दे रखा है, वह अपने व्यक्तिगत कारोबार में लगातार ३० से ४० फीसदी सालाना मुनाफा कमा रही हैं, तो फिर यहां दस फीसदी से भी कम आमदनी दे पाने में जान क्यों जा रही है। यह ठीक है कि ज्यादा ब्याज देने केलिए भविष्य निधि का पैसा पूरी तरह शेयर बाजार के जोखिमों में नहीं झोंका जा सकता, पर ऐसा भी नहीं कि सुरक्षित ढंग से नौ-दस फीसदी ब्याज भी न निकाला जा सके। अब जबकि ईपीएफओ ने एएए प्लस रेटिंग वाले बॉडों में 40 के बजाय 50 फीसदी निवेश और एए प्लस रेटिंग वाले बांडों में मौजूदा 25 की जगह 40 फीसदी निवेश का निर्णय लिया है। यह बांड भी सरकारी गारंटीशुदा सबसे ऊंची साख वाली कंपनियों के होंगे। जाहिर है इससे जहां ईपीएफओ के लिए बेहतर ब्याज पाने के रास्ते खुलेंगे, वहीं देश के मूलभूत ढांचे को मजबूत करने के लिए खड़ी की गई इन सरकारी कंपनियों को भी अपने विस्तार को पूंजी मिलेगी।
कर्मचारियों के कल्याण केलिए बना संगठन आज अगर सूदखोरों जैसी भाषा बोल रहा है, जो यह आश्चर्यजनक ही नहीं, बल्कि कहीं न कहीं यह तंत्र में शामिल कुछ लोगों की बदनीयती की ओर भी इशारा करता है। दो करोड़ खातों का ब्याज बंद कर देना इनकेही दिमाग की उपज जान पड़ती है। गंभीरता से विचार करने वाली बात यह भी है कि जिन खातों मे पैसे नहीं आ रहे हैं, उनके खाताधारकों ने कोई शौक से पैसे देना बंद नहीं कर दिया है। यह तो हालात के मारे वह लोग है, जिनकी या तो नौकरियां चली गई हैं, या फिलहाल वह संस्थानों में नौकरी कर रहे हैं, जहां कंपनी अपना अंशदान देने से बचने केलिए उनका पीएफ नहीं काट रही। ऐसे में चोट खाए इन लोगों के खातों पर ब्याज बंद कर देना कहां की भलमनसाहत है। मूल रूप से कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा लिए बनाया गया ईपीएफओ अपने मूल उद्देश्य को ही भूलकर भला इस तरह की कार्रवाई कैसे कर रहा है। यह सवाल जोर-शोर से न उठाया गया तो, आश्चर्य नहीं कि एक के बाद एक ऐसे फैसलों से हमारा देश कल्याणकारी राज्य से एक 'कॉरपोरेट स्टेटÓ में तब्दील हो जाएगा।