19 फ़रवरी 2015

मोदी चले तुगलक की राह


मुगलों से पहले मध्य कालीन भारत का सबसे चर्चित शासक था मोहम्मद बिन तुगलक। उसे आज भी याद किया जाता है। बहादुरी, दरियादिली या फिर सुगठित शासन व्यवस्‍था के लिए नहीं, बल्कि राजधानी को दिल्ली से दौलता बाद ले जाने और चमड़े के सिक्के (टोकन करेंसी) चलाने जैसे सनक भरे फैसलों के चलते। यह सनकीपन ही आखिरकार उसके पतन का कारण बना। आज की तारीख में दिल्ली के तख्त पर बैठे 56 इंच के सीने वाले महाशय भी कुछ ऐसी ही कारगुजारियां करते हुए उसी राह पर बढ़ते दिख रहे हैं।
कांग्रेस नीत यूपीए के 10 साल के थकाऊ-ऊबाऊ-पकाऊ शासन के खिलाफ जनता के भारी गुस्से के चलते यह महाशय स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में तो आ गए, पर क्षेत्रीय क्षत्रपों वाली मानसिकता से उबर नहीं पा रहे हैं। हाथ में पूरे देश की कमान होने पर भी किसी छोटी सी रियासत के जागीरदार या जमींदार जैसा व्यवहार कर रहे हैं महाशय मोदी। प्रधानमंत्री देश के हिसाब से फैसले लेता है, पर इनको किसी भी बड़े कदम के लिए अपना अहमदाबाद ‌या फिर बनारस ही नजर आता है। इसकी सबसे पहली झलक देश की पहली बुलेट ट्रेन अहमदाबाद से दिल्ली के बीच चलाने की (हवाहवाई) घोषणा करके दी गई। इसके बाद चीन के राष्ट्रपति भारत आए, तो उनके स्वागत का कार्यक्रम दिल्ली के बजाय अहमदाबाद में इन्होंने किया। वश चलता तो शायद ओबामा को भी वहीं ले जाते, पर दुनिया का चौधरी जाते-जाते धार्मिक असहिष्‍णुता पर चिंता जताकर अपने ढंग से इनको आईना दिखा गया।
गंगा सफाई अभियान और बनारस के घाटों की सफाई के लिए भारी-भरकम बजट के आवंटन जरिए भी कहीं न कहीं इन्होंने अपनी सियासी हनक ही दिखाने की कोशिश की है, वर्ना क्या गंगा के घाट इलाहाबाद में नहीं हैं? या फिर गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम प्रयाग का धार्मिक महात्म्य काशी से कम है, जो यहां के घाटों के लिए धेला नहीं दिया गया। गंगा में सबसे ज्याद गंदगी कानपुर की चमड़ा मिलों से गिरती है और यहीं से गंगा सबसे ज्यादामैली होकर बनारस पहुंचती है। ऐसे में कोई भी कॉमन सेंस वाला व्यक्ति समझ सकता है कि अगर कानपुर में गंगा को प्रदूषित होने से बचा लिया जाए, तो बनारस में बहुत ज्यादा भगीरथ प्रयास करने की जरूरत नहीं होगी। पर यह भला क्योंकर हो? बनारस से जोशी को धक्का मारकर इन्होंने कानपुर भेज दिया,

तो गंगा का उद्धार भी अब बनारस में ही होगा, कानपुर में नहीं।
मोदी महाशय की इस सनक भरी सोच को कॉरपोरेट जगत ने भी खूब अच्छी तरह भांप लिया है। तभी तो पिछले दिनों एचडीएफसी बैंक ने अपने ऑनलाइन बैंकिंग प्लेटफार्म और मोबाइल ऐप की लांचिंग दिल्ली-मुंबई को छोड़ बनारस में की। अब सुनते हैं दुनिया की परिक्रमा पर निकला सौर ऊर्जा से चलने वाला विमान सोलर इंपल्स 2 भारत आ रहा है, तो इसे भी अहमदाबाद और वाराणसी में लैंड कराया जा रहा है। हालांकि भारत में इन्हीं दोनो शहरों को चुने जाने के पीछे किसी राजनीतिक वजह होने की बात से इंकार किया जा रहा है, पर हकीकत क्या है यह हर कोई समझता है। सोलर इंपल्स परियोजना को शुरू करने वाले बर्ट्रेंड पिकार्ड ने बीते दिनों एक साक्षात्कार में अहमदाबाद और वाराणसी को चुनने के कारण के बारे में पूछे जाने पर कहा था कि इसके पीछे कोई राजनीतिक कारण नहीं हैं, बल्कि हवा की दिशा की वजह से उन्‍होंने इन दोनों शहरों को चुना है। अब की दिशा विमान के भारत पहुंचने पर भी उसी दिशा में रहेगी यह पूर्वानुमान वह कैसे लगा रहे हैं और अहमदाबाद और बनारस के अनुकूल ही हवा बहेगी यह बातें अपने आप में सोचने वाली हैं। वैसे, पिकार्ड प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जानते जरूर हैं। उन्‍होंने बताया, 'मैं जब अहमदाबाद में था तब नरेंद्र मोदी से दो बार मिला था।'
बहरहाल जुलाई में स्विटजर लैंड से उड़ान भरने वाले सोलर इंपल्स के3 मार्च को भारत आने की संभावना है। भारत आने की संभावित तारीख है। इसके आतिथ्य का जिम्मा आदित्य बिरला समूह को सौंपा गया है। विमान का दुनिया की सैर पर निकलने का उद्देश्य अत्याधुनिक अक्षय प्रौद्योगिकियों को प्रदर्शित करना है जिसे बनाने में करीब 80 कंपनियां शामिल हैं।



13 फ़रवरी 2015

ऑनलाइन स्टोरों पर वेलेंटाइन बाबा की फुल कृपा

प्रेम पर्व ऑनलाइन स्टेलरों की उम्मीदें भी जवां
प्यार का तोहफा तेरा, बना है जीवन मेरा जंपिंग जैक जीतेंद्र पर फिल्माया यह गाना आजकल प्रेमी जोड़ों के साथ-साथ ऑन लाइन स्टोर चलाने वाले कारोबारियों के दिलों में भी फुल वॉल्यूम पर बज रहा है। हो भी क्यों न? वेलेंटाइन डे पर उन्हें अपने बिजनेस का वॉल्यूम बढ़ने की उम्मीदें साकार होती जो नजर आ रही हैं। उद्योग संगठन एसोचैम का एक ताजा सर्वे कुछ ऐसी कहानी बयान कर रहा है। सर्वे में इस साल वेलेंटाइन सीजन में बिक्री 40 फीसदी बढ़ने की उम्मीद जताई गई है।
सर्वे में इस साल 22,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की बिक्री की बात कही गई है। यह पिछले वेलेंटाइन पर हुए 16,000 करोड़ रुपये के कारोबार से 40 फीसदी अधिक है। प्यार के इजहार के इस त्योहार पर तोहफे में देने के लिए वेलेंटाइन कार्ड, फूलों के बुके, चॉकलेट, खिलौने, गार्मेंट, मोबाइल फोन, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण से लेकर महंगी घड़ियों और साने व हीरे के कीमती गहनों तक की धुआंधार बिक्री हो रही है।
 यही नहीं, इस साल ऑनलाइन खरीदारी कुल खरीदारी के 32 फीसदी तक पहुंचने का अनुमान है, जबकि पिछले साल 20.5 फीसदी खरीदारी ही ऑनलाइन की गई थी। सर्वे के तहत करीब 600 कंपनियों से बातचीत की गई। इससे पता चला कि कालेज में पढ़ाई करने वाले छात्र-छात्राओं के साथ-साथ ऑनलाइन स्टोरों की नजर खासतौर पर कमाई कर रहे युवा जोड़ों पर है। ऐसे में आईटी और आईटी से जुड़ी दूसरी कंपनियों, बीपीओ, खुदरा कारोबार करने वाली कंपनियों, बड़े कॉरपोरेट हाउसों में काम कर रहे युवाओं को फोकस करके आकर्षक ऑफर पेश किए गए हैं।
सर्वे में शामिल 52 फीसदी लोगों ने माना है कि ऑनलाइन खरीदारी सुविधाजनक होने के साथ ही उन्हें पसंद के उत्पाद चुनने के ज्यादा विकल्प देती है। इसलिये वह बाजार जाकर खरीदारी करने के बजाय ऑनलाइन खरीद को तरजीह दे रहे हैं। सर्वे के मुताबिक में स्मार्ट फोन रखने वाले करीब 50 फीसदी लोग और टैबलेट रखने वाले 18 प्रतिशत लोग ऑनलाइन खरीदारी का विकल्प चुन रहे हैं।
वेलेंटाइन डे के मौके पर ट्रैवल कंपनियों ने भी अब विशेष पैकेज देना शुरू कर दिया है। कंपनियां केरल, गोवा, नैनीताल, माउंट आबू, देहरादून, मसूरी, कसौली, शिमला, पंचवटी जैसी जगहों पर सैर-सपाटे के लिए 6,000 से लेकर 60,000 रुपये के टूर पैकेज दे रही हैं। एयरलाइंस कंपनियां भी पीछे नहीं हैं। वह भी बंगलूरू, हैदराबाद, जयपुर, शिमला, मुंबई, गोवा, केरल से लेकर विदेश में बैंकाक और सिंगापुर तक के लिए सस्ते हवाई टिकट उपलब्ध करा रही हैं। एसोचैम के महासचिव डीएस रावत का कहना है कि वेलेंटाइन-डे कंपनियों के लिए एक बड़ा खरीदारी महोत्सव बनता जा रहा है। पिछले चार-पांच साल से इस मौके पर खरीदारों का उत्साह काफी तेजी से बढ़ता दिख रहा है।

12 फ़रवरी 2015

अनूठा है केजरी का यह ठाकरे कनेक्‍शन

अनूठा है केजरी का यह ठाकरे कनेक्‍शन


बात अटपटी और चौंकाने वाली लगती है। शीर्षक पढ़कर लग रहा होगा कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ सत्तासीन हो रहे अरविंद केजरीवाल और उद्धव ठाकरे या राज ठाकरे के बीच किसी गुपचुप सियासी गठजोड़ का खुलासा होने वाला है। सस्पेंस यहीं खत्म करता हूं, ऐसा कुछ नहीं। बात राज ठाकरे और अरविंद केजरीवाल से जुड़ी हुई तो है, पर उनके बीच किसी गठजोड़ की नहीं, बल्‍कि केजरी की जीत पर राज ठाकरे द्वारा बनाए गए एक शानदार कार्टून की कर रहा हूं। यह बात मेरे दिमाग को इतना क्लिक इसलिए कर गई, क्योंकि यह एक साथ दो बड़े विरोधाभासों को उजागर करती है। साथ ही एक अद्भुत संभावना का दरवाजा खोलती दिखती है।
पहला विरोधाभास राज ठाकरे की इमेज, उनके बारे में पब्लिक पर्सेप्शन और उनकी अस्ल शख्सियत व बौद्धिक क्षमता के बीच नजर आता है। केजरी रूपी विमान द्वारा मोदी और अमित शाह के गगनचुंबी ट्विन टावर उड़ाने वाला यह कार्टून बड़े साफ तौर पर स्पष्ट करता है कि सियासत में जिस तरह की छिछली और जाहिलाना किस्म की बातें राज ठाकरे करते हैं, वह यकीनन उनके जहन से निकली हुई नहीं होतीं।
ठाकरे का यह बेहतरीन कार्टून उनकी दमदार कल्पनाशीलता, व्यंग्यात्मक दृष्टि और सशक्त बौद्धिक क्षमता को दर्शाता है। पिछले करीब दसेक दिन से केजरीवाल, मोदी और दिल्ली चुनाव के रंग में पूरी तरह से रंगे मीडिया ने दिल्ली के अप्रत्याशित चुनाव परिणाम को मोदी के अहंकार पर केजरीवाल की सादगी की जीत और इसी तरह की कई व्याख्याओं के साथ पेश किया। न्यूज चैनलों पर घंटे-घंटे भर की बहसें और केजरी की प्रशंसा में डूबे निबंधात्मक फीचर तो देखने को मिले, पर इतने मजेदार और चुटीले ढंग से पॉलिटकल सटायर कहीं नहीं दिखा, जैसा ठाकरे ने अपने कार्टून में किया है। इस घटना को टीवी पर आश्चर्यपूर्वक देखते ओबामा को चित्रित कर ठाकरे ने एक स्‍थानीय घटना से पूरी दुनिया को मिलने वाले संदेश को परिलक्षित कर इसे जो ग्लोबल पर्सेप्‍शन दिया है, वह काबिलेतारीफ है।
कुल मिलाकर कार्टून यह सोचने को मजबूर करता है कि काश राज ठाकरे सियासत में न होकर कार्टूनिंग के क्षेत्र में ही हाथ आजमाते, तो वह देश-समाज को नफरत और नकारात्मकता के बजाय काफी सृजनात्मक और सकारात्मक दे सकते थे। वह राज ठाकरे के सियासी वारिस के बजाय कार्टूनिस्ट बाल ठाकरे के सुयोग्य वारिस साबित हो सकते थे। बहरहाल, ख्वाम ख्याली ही सही, पर मैं सोचता हूं कि महाराष्ट्र के विधानसभा में राजनीतिक रूप से पूरी तरह पैदल हो चुके सियासत राज ठाकरे भविष्य में अगर अपने अंदर छिपे इस शानदार कलाकार को आगे बढ़ाएं, तो यह देश और उनके दोनों ही के लिए काफी अच्छा हो सकता है।
पूरे प्रकरण से एक विरोधाभास यह स्पष्ट भी होता है कि मोदी, राज और यहां तक कि उद्धव ठाकरे, तीनों ही ऊपरी तौर पर तो कट्टरता की एक ही सियासी कश्ती में सवार तो दिखते हैं, पर वास्तव में यह एक-दूसरे को फूटी आंख भी नहीं सुहाते, क्योंकि केजरी की जीत के बहाने राज और उद्धव ने मोदी पर तीखे व्यंग्य बाण छोड़ने का मौका कतई नहीं गंवाया। जाहिर है कि हिंदुत्व और प्रखर राष्ट्रवाद के इस मठ में सबके अपने-अपने खेमे हैं और मौका मिलते ही यह किलेदार एक दूसरे पर तोप दागने से चूकने वाले नहीं। हिंदू राष्ट्र का दिवास्वप्न यह केवल सोची-समझी साजिश के तहत जनता के एक बड़े तबके को दिखाते हैं अपनी सियासी रोजी-रोटी चलाने के लिए।