25 सितंबर 2009
दरोगा जी में जाग उठी ’ देवी ’
माथे पर रोली का लंबा सा टीका लगाए आज उनके मुख की शोभा कुछ अलग सी है। रोजाना के रौब के साथ-साथ एक अनूठा तेज टपक रहा है चेहरे से। जिप्सी की अगली सीट पर बैठे एसओ साहब पूरे एक्शन में हैं। अरे, एक्शन मतलब वसूली नहीं यार ! आप लोग तो खामखां एक ही जगह अटक जाते हो। अरे नौराते शुरू हो चुके हैं। कुछ तो धार्मिक हो जाओ। कुछ तो शुभ-शुभ बोलो। ---हां तो साहब एक्शन में हैं। पूरे धार्मिक मूड में। हर साल की तरह नवरात्रि में फिर से देवी जाग उठी है उनके भीतर मुंशी से लेकर सिपाही तक जानते हैं उनका यह रूप। गाड़ी चैराहे पर पहुंचते ही सारे के सारे वर्दी वाले टाइट हो जाते हैं। बूचड़खाने के सामने तैनात सिपाही को बुला कर फट पड़ते हैं। साले तेरी भैन की--- क्या कर रहा है यहां खडे़-खड़े सुबह से। कैसे लगा हुआ है गाड़ियों का मेला। खदेड़ सालों को दीवार के भीतर। सड़क पर भेड़-बकरियां फैला रखी हैं। सिपाही साहब का आदेश बजाने में तत्परता से जुट जाता है गाड़ी वालों की मां-बहन तोलते हुए। गाड़ियों पर डंडे फटकारता है। देखते ही देखते सड़क खाली। सारी गाड़ियां बूचड़खाने की चहरदीवारी के भीतर हो लेती हैं। कटने के लिए गए लाए गए मवेशी भी धड़ाधड़ अंदर धकेल दिये जाते हैं। सिपाही राहत की सांस लेकर पसीना पोछता है। गालियां एक बार फिर उसके होठों पर तैर आती हैं। इस बार गाड़ी वालों के लिए नहीं, थानेदार के लिए- ’ साला पहली तारीख से पहले ही महीने की पांच पेटियां खा जाता है कसाई के बाप से और हमसे पूछता है गाड़ियों का मेला क्यों लगा रखा है। बड़ा देवी का भक्त बना फिर रहा है, देवी जाग उठी है साले के भीतर नौरातों में। --- में बूता है तो पैसे खाना बंद कर दे गाड़िया तो यहां से ऐसी गायब कर दूंगा जैसे गधे के सिर से सींग।’ सिपाही का गुस्सा उबल रहा है। नादान नहीं जानता दरोगा के भीतर जागी ’देवी’ लाचार है महिषासुरों के आगे, कि महिषासुर ’ मैनेजमेंट गुरु ’ बन चुका है आज । सत्ता की गलियारों में उसके ही एजेंट भरे पड़े हैं। अकेली देवी किस-किस से पंगा लेगी।
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