18 मार्च 2015

काले धन पर काली नीयत ?


राज्यसभा में वित्त मंत्री एक बार फिर से अपने चिर-परिचित अंदाज में मोदी सरकार द्वारा काले धन पर लगाम कसने के लिए सख्त कदम उठाए जाने का दम भरते दिख। वह संसद में सरकार द्वारा इस संबंध में पेश किए जा रहे विधेयक के समर्थन में दलीलें दे रहे थे। जेटली काले धन पर नए कानून के लिए प्रस्तावित इस विधेयक को अभूतपूर्व और पूरी तरह कारगर बता रहे थे। वित्तमंत्री का कहना था कि सरकार इसमें बहुत सख्त उपाय कर रही है, जिससे काले धन की समस्या से काफी हद तक निजात पाई जा सकेगी। उनके दावे अपनी जगह हैं, पर बिल के कुछ प्रमुख प्रावधानों पर गौर करें तो, यह समस्या को हल करने वाले कम और करदाताओं के लिए नई दिक्कतें खड़ी करने वाले ज्यादा लग रहे हैं। बिल में आयकर रिटर्न न भरने और रिटर्न में आय कम दिखाने पर 10 साल तक की सजा का प्रावधान है। आयकर जुटाने के लिए अपने देश में खड़े किए गए सरकारी तंत्र के चाल-चरित्र पर गौर करें, तो इस प्रावधान के दुरुपयोग की भारी आशंका नजर आती है। एक तरह से यह इंस्पेक्टर राज को बढ़ावा देने में भी सहायक साबित हो सकता है। 
यह आशंका बेवजह नहीं कही जा सकती, क्योंकि देश में आयकर विभाग की कार्यप्रणाली और कर संग्रह का जो तरीका है उसमें आयकर के दायरे में सबसे पहले और सबसे ज्यादा वेतनभोगी कर्मचारियों और पेशेवर (प्रोफेशनल) लोगों का वर्ग आता है। गौरतलब है कि इस वर्ग के लोगों को उनका वेतन या भुगतान देय आयकर की कटौती करने के बाद ही किया जाता है। कर्मचारियों को अपने नियोक्ताओं के पास सालाना आय और उसमें छूट पाने के लिए किए गए निवेश व अन्य उपायों का डिक्लेयरेशन वित्त वर्ष के शुरू में ही दाखिल कर देना होता है। इसके आधार पर उनकी करयोग्य आय और देय कर की गणना करके नियोक्ता की ओर से वेतन में से आयकर की कटौती की जाती है। इसी तरह प्रोफेशनल लोगों को भी भुगतान आय के स्रोत से ही कर कटौती (टीडीएस) के बाद ही किया जाता है। ऐसे में इस वर्ग के लिए कर से बच पाने के रास्ते बहुत सीमित होते हैं। आयकर छूट की 2.5 लाख रुपये की सीमा और विभिन्न धाराओं के तहत निवेश और अन्य छूटों के चलते सालाना 4.22 लाख रुपये तक की आय वाले व्यक्ति की कर देयता शून्‍य रह सकती है। ऐसे में इस वर्ग में अच्छी खासी तादाद में ऐसे लोग भी होते हैं जिनपर कोई कर देयता बनती ही नहीं। इसके साथ ही ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं, जिनपर कर देयता इतनी ही बनती है, जितना कर वह सरकार को खुशी-खुशी देने को तैयार होते हैं और इसका रिफंड पाने के लिए उनके पास कोई आधार नहीं होता। साथ ही कई बार रिफंड की रकम ऐसी होती है कि रिटर्न दाखिल करने का खर्च उससे ज्यादा बैठता है। ऐसे में इन लोगों के लिए रिटर्न भरना वाकई एक बड़ी सिरदर्दी है, पर आयकर कानून रिटर्न भरने को जरूरी बताता है। सरकार ने रिटर्न भरने के फार्म का नाम भले ‘सरल’ रख दिया है, पर लोग जानते हैं कि यह कतई सरल नहीं है। फार्म को किसी सीए, वकील या कंसल्टेंट की सलाह के बिना बिरले ही भर पाते हैं। ऑनलाइन रिटर्न में भी यही फार्म भरा जाता है। ऐसे में झंझट और पेचीदेपन के चलते कई लोग रिटर्न दाखिल नहीं कर पाते।  ऐसे में नए बिल में रिटर्न न भ्‍ारने पर जेल के प्रावधान की गाज इस वर्ग के लोगों पर पड़ने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। देखा जाए तो इस तरह के प्रावधान विधि शास्‍त्र के उस मूल सिद्धांत के भी खिलाफ हैं, जिसके मुताबिक जब तक आप पर दोष्‍ा साबित न हो, आप बेकसूर हैं। 
काले धन के मसले से जुड़े सियासी पहलू पर भी गौर करें, तो मोदी सरकार का यह कानून चुनाव प्रचार में उनकी ओर से किए गए बड़े-बड़े दावों को सच करने की दिशा में कुछ करता दिखाई नहीं देता। रैलियों में 56 इंच का सीना ठोंक कर मोदी बार-बार दावे कर रहे थे कि विदेशों में जमा काला धन वापस लाया जाएगा। कालाधन वापस आया तो हर देशवासी के खाते में 15 लाख रुपये का पॉप्युलिस्ट जुमला भी उछाला गया था। इधर सुब्रमण्यम स्वामी और अरुण जेटली भी काला धन वापस लाने की राह में अंतरराष्ट्रीय समझौतों की बाध्यताओं की यूपीए की बात को कोरी बहानेबाजी बता रहे थे। सुब्रमण्यम स्वामी तो महज 100 दिनों के भीतर कानूनी ढंग से यह अड़चने दूर कर देने का दावा कर रहे थे। उधर योग गुरु रामदेव भी काले धन के खिलाफ यात्रा पर निकल पड़े थे। उनका कहना था कि सत्ता में आने के बाद अगर मोदी काला धन लाने का वादा पूरा नहीं करते तो वह उनके खिलाफ भी आंदोलन करेंगे। नई सरकार बने महीनों बीत गए। हर खाते में 15 लाख तो क्या, विदेश में जमा काले धन की रकम का एक धेला भी देश नहीं आया। बड़े-बड़े दावे करने वाले इस पर चुप हैं। सख्त कानून बनाने की बात कह कर पुराने दावों और वायदों से मुंह फेरा जा रहा है। सीधी सी बात है कि नया कानून बहुत कारगर भी हुआ, तो आगे चलकर काले धन पर रोक लगाने के काम आएगा। विदेश में जमा लाखों करोड़ की रकम वापस लाने के मोदी, जेटली, स्वामी और रामदेव के बड़े-बड़े वादों का क्या हुआ। काले धन और कर संबंधी सख्ती पर सरकार की नीयत की एक बानगी आम बजट में गार (जनरल एंटी-एवाइडेंस रूल) पर अमल को दो साल के लिए टाले से भी देखने को मिलती है।

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