31 मई 2009

आदमी दुनिया के शोर शराबें में खुद को डुबो देना, खो देना चाहता है क्योंकि वह सबसे ज्यादा डरतहा है अपने भीतर के शोर से, यह शोर अकसर खुद उसके खिलाफ ही विद्रोह करता है यह चीख रहा होता है उसके उन कर्मों पर जो वो दुनियावी बहकावों में आकर या किसी त्रिष्णा में फंस कर करता तो है पर इन कामों के लिए कहीं न कहीं भीतर ही भीतर उसकी आत्मा उसे धिक्कारती है और इस अंदर-बाहर के विरोधाभास में आदमी के अंतस का संगीत बिखर जाता है इस लिए वह दुनिया भर का गीत संगीत सुनता फिरता है कि इनकी आवाज में अपने भीतर के बिगडे हुए संगीत को भूल जाए

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