‘भाग्य विधाताओं’ का ‘डबल गेम’
लोकसभा चुनाव में इस बार बाहुबलियों का चारों खाने चित होना बेशक राजनीति के लिए शुभ संकेत माना जा सकता है/ इससे सियासत में गुंडाराज का दौर थमने का संकेत मितला है/ पर इतने भर से राजनीति की सारी गंदगी दूर हो जाएगी और राजनीति पूरी तरह साफ-सुथरी हो जाएगी, यह मान लेना खुद को धोखे में रखना ही होगा/ वास्तव में हमारे यहां सियासत की इससे कहीं बड़ी त्रासदी है नेताओं का दोहरा चरित्र, कथनी-करनी का भेद और लंपटता/ जबतक यह चीजें राजनीति से दूर नहीं होंगी तबतक जतना अपने ‘भाग्य विधाताओं’ के हाथों ठगी ही जाती रहेगी/ बाहुबली बनाम लंपट की इस लड़ाई में लंपटता किस तरह और किस कदर भारी पड़ती है इसकी एक बानगी इलाहाबाद की फूलपुर सीट पर लोकसभा चुनाव में खेला गया गुपचुप खेल पेश करता है/ सियासत के इस ‘डबल गेम’ जनता इस नफासत के साथ छली गई कि उसे पता भी न चलने पाया और मतलब साधने वालों ने अपनी रोटियां भी सेंक लीं/ बात पिछली बार सांसद रहे बाहुबली नेता अतीक अहमद से जुड़ी है/ खेल खेलने वाला कोई और नहीं खुद सूबे की सत्ताधारी पार्टी बसपा थी/ यूपी में ज्यादा से ज्यादा सीटों पर कब्जा कर दिल्ली की गद्दी की जोड़तोड़ में वह सत्ता की सबसे बड़ी दलाल बनने के सपने संजोए बैठी थी/ इसलिए सपा के कब्जे से एक-एक सीट हथियाने को हाथी ने न सिर्फ पूरी ताकत झोंक दी, बल्कि तिकड़मबाजी भी हर तरह से की/ मुकदमे वापस लेने और कुर्की जब्ती रोकने और लोकसभा चुनाव में बसपा से टिकट देने की हरियाली दिखा कर पहले परमाणु करार पर अविश्वास प्रस्ताव के वक्त अतीक से सरकार के खिलापफ वोट डलवाया गया/ कांगे्रस के जैसे-तैसे सरकार बचा ले जाने पर सरकार गिरवाने का यह मंसूबा फेल हो गया/ इसके बाद ही शुरू हुआ सियासत का ‘डबल गेम’ सूबे की सरकार गहरी दखल रखने वाले मंत्री नसीमुदृदीन जेल में ही अतीक से मिले और लाखों मतदाताओं को बेवकूफ बनाने का गुप्त समझौता कर लिया गया/ सियासत के इस गंदे खेल में एक तीसरा खिलाड़ी भी शामिल था/ यह थे अपना दल के अध्यक्ष सोनेलाल पटेल/ दरअसल बसपा ने अतीक को खुद टिकट न देकर अपना दल से दिलवाया, वह भी उनके कब्जे की सीट फूलपुर से नहीं, प्रतापगढ़ से/ डील यह थी किफूलपुर से सोनेलाल चुनाव लड़ेंगे और अतीक यहां के मुस्लिम वोट उनकी झोली में गिरवा देंगे, उधर प्रतापगढ़ से चुनाव लड़कर वह वहां मुस्लिम वोट काटेंगे/ इस तरह दोनों ही सीटों पर सपा को लंगड़ी लगाई जाएगी/ हुआ भी ठीक यही/ अपना दल से प्रत्याशी खड़ा करने के बाद भी सोनेलाल यहां से निर्दलीय खड़े हो गए और यहां के सबसे बड़े पटेल वोट बैंक और अतीक की मदद से मुस्लिम वोट अच्छी खासी तादाद में उनकी झोली में आ गिरे/ नतीजा यह हुआ कि सीधी लड़ाई में दिख रहे सपा के श्यामाचरण गुप्ता चित हो गए/ उधर प्रतापगढ़ में अतीक ने मुस्लिम वोट काट कर सीट सपा के कब्जे में आने से रोक दी/ अतीक पांचवें स्थान पर रहे/ जनता ने सोचा कि उसने एक बाहुबली को चुनावी मैदान में पटखनी देकर सबक सिखाया है, पर दरअसल अतीक तो चुनाव हार कर भी जीत गए/ जनता को पता भी नहीं चलने पाया कि राजनीति के लंपटों के हाथों वह किस शातिराना अंदाज में छली गई/ वह खुद के भाग्य विधाता होने की गलत पफहमी पाले खुशी मनाती रही इधर भाग्य विधाताओं ने अपना असली चरित्र और खेल दिखा दिया/
achhee raajnitik charcha .....
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