20 जनवरी 2010
महंगाई पर तमाशेबाजी!
महंगाई आज देश की जनता के लिए ङ्क्षचता का सबसे बड़ा का मुद्दा है। दूसरी ओर सरकार में बैठे लोगों लिए शायद यह महज बौद्धिक कलाकारी और बयानबाजी का विषय बनकर रह गया है। शायद यही वजह है कि सरकार की तमाम कोशिशों केबावजूद महंगाई जहां की तहां कायम है। उधर सरकार में ऊंचे ओहदों पर बैठे लोग महंगाई को लेकर तरह-तरह की व्याख्याएं पेश कर रहे हैं। कई बार तो यह व्याख्याएं इतनी अजीबोगरीब होती हैं कि यह भी समझ नहीं आता कि इन पर हंसा जाए या रोया जाए। एक-दो दिन पहले देश के कृषि मंत्री शरद पवार ने महंगाई का कारण ग्लोबल वार्मिंग को बताकर सरकार की खासी किरकिरी करवाई थी। कुछ ऐसा ही बयान मंगलवार को योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया का आया है। अहलूवालिया ने महंगाई की वजह अनाज और खाद्य पदार्थों उत्पादन में कमी के बजाए वितरण व्यवस्था में खामी को बताया है। उनके मुताबिक सूखे के बाद कीमतों को लेकर अटकलों के चलते महंगाई बढ़ी है। सब्जियों और आलू-प्याज का उदाहरण देते हुए मोंटेक ने कहा कि इनकी कीमतों में अपेक्षा से कहीं अधिक बढ़ोतरी हुई है और महंगाई को मौद्रिक उपायों के जरिए नियंत्रित नहीं किया जा सकता। योजना आयोग के उपाध्यक्ष की यह कथनी महंगाई की गेंद को दूसरे के पाले में डालने की कवायद ही जान पड़ती है। आर्थिक कारणों के बजाए महंगाई का ठीकरा व्यवस्थागत खामियों के सिर फोड़कर उन्होंने हमारे अर्थतंत्र के नीति नियंताओं और नियामकों के बचाव की नाकाम कोशिश की है। व्यावहारिक तौर पर उनकी बात कुछ हद तक ठीक हो सकती है, पर वितरण में खामियों के नाम पर आर्थिक मोर्चे पर सरकार की विफलता को छुपाया नहीं जा सकता। दूसरी बात यह है कि उनकी बातों को अगर ठीक मान भी लिया जाए तो क्या इससे सरकार महंगाई पर अपनी जवाबदेही से बच सकती है? यदि देश में अनाज का पर्याप्त भंडार है और वितरण व्यवस्था में खामी के चलते महंगाई बेलगाम बढ़ रही है तो सवाल यह उठता है कि वितरण व्यवस्था की इस खामी को सुधारना आखिर किसका काम है। क्या यह सरकार का काम नहीं? क्या हमारे देश की वितरण प्रणाली को सुधारने के लिए विदेश से कोई आएगा। देखा जाए तो मोंटेक की यह दलील सरकार को दोषमुक्त करने के बजाए उसकी नाकामी को नकारेपन का दर्जा देने वाली लगती है। अनाज की कमी होने पर मांग और पूर्ति के अंतर के चलते कीमतें बढऩे की बात तो स्वाभाविक और तार्किक है, पर यदि हमारी सरकार भंडार भरे होने पर भी महंगाई बढऩे दे रही है तो उसका दोष और भी बढ़ जाता है। सियासत की रोटियां सेकने केलिए नेता-मंत्री तो तरह-तरह की बातें कहते रहते हैं पर योजना आयोग उपाध्यक्ष जैसे नीति निर्धारक पद पर बैठे और अच्छे अर्थशास्त्री की छवि रखने वाले मोंटेक सिंह ने यह बात कही है। इसलिए इसे गंभीरता से लिया जाना जरूरी है। अगर इसमें सच्चाई है तो सरकार को इस दिशा में त्वरित कार्रवाई करते हुए वितरण व्यवस्था की खामियों को दूर करने के कारगर कदम उठाने चाहिए।
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