‘औरों को नसीहत, खुद मियां फजीहत’ का जुमला आम आदमी पार्टी पर आज एक बार फिर सौ फीसदी फिट बैठता दिखा। मसला लोकसभा चुनाव खर्च का ब्योरा न दिए जाने के चलते चुनाव आयोग द्वारा पार्टी की मान्यता खत्म किए जाने को लेकर जारी नोटिस का है। यानी नीतय के साथ-साथ पार्टी के वजूद का भी सवाल है इस बार। वैसे तो आयोग की ओर से आप के साथ-साथ छह और पार्टियों को भी यह नोटिस भेजा गया है। इनमें पीपुल्स पार्टी ऑफ अरूणाचल, झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम), केरल कांग्रेस (एम), नेशनल पीपुल पार्टी ऑफ मणिपुर और हरियाणा जनहित कांग्रेस (बीएल) शामिल हैं। नोटिस को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा आम आदमी पार्टी के नाम पर हो रही है और यह चर्चा वाजिब व लाजमी भी है। वजह है आप का खुद को पूरी तरह पाक-साफ बता कर हमेशा दूसरों पर कीचड़ उछालना।
पार्टी और उसके मुखिया अरविंद केजरीवाल हमेशा बुलंद आवाज में दावा करते रहे हैं कि वह सत्ता का सुख भोगने नहीं, देश की राजनीति को स्वच्छ करने आए हैं। स्वच्छता के इतने बड़े ठेकेदार हैं केजरीवाल तो रुपये-पैसे का हिसाब मांगते ही हमेशा बोलती क्यों बंद हो जाती है उनकी। बात चाहे उनके एनजीओ और आप को मिलने वाले चंदे की हो या चुनाव में खर्च किए गए पैसों की किसी का भी हिसाब देना उन्हें गवारा नहीं। पार्टी की फंडिंग को लेकर पहले भी कई बार सवाल उठ चुके हैं और स्टिंग तक सामने आ चुका है। हर बार कोई सॉलिड फैक्ट शीट या बैलेंस शीट सामने रखने के बजाय केजरीवाल और उनके बड़बोले सिपहसालार एक सवाल के जवाब में दूसरों पर दस सवाल दाग कर मामले को रफादफा करने की कवायद करते नजर आते हैं। यही इनकी सियासत है और चरित्र भी। पर मामला इस बार चुनाव आयोग का है किसी व्यक्ति, संगठन या प्रतिद्वांद्वी पार्टी का नहीं। जवाब तो देना ही पड़गा जनाब को इस बार क्योंकि बात अब बन आई है पार्टी के चुनाव चिन्ह और मान्यता पर।
चुनाव आयोग के पास वह जो हिसाब-किताब भेजें सो अपनी जगह, पर इस बात की सफाई तो उन्हें सार्वजनिक तौर पर देनी चाहिए कि अगर उनकी पार्टी ने पैसे के दम पर चुनाव नहीं लड़ा और नियमों-कानूनों के पालन में दुनिया में इकलौते वही सच्चे हैं, तो लोकसभा चुनाव के करीब नौ माह बीत जाने पर भी पार्टी चुनाव खर्च का ब्योरा क्यों नहीं दे सकी। ऐसा भी नहीं कि चुनाव आयोग का यह पहला नोटिस हो। इससे पहले आयोग की ओर से इस बारे में 22 अक्टूबर और 28 नवंबर को रिमाइंडर भेजे जा चुके हैं। इसके बावजूद पर कान पर जूं तक नहीं रेंगी जनाब के, जिसके बाद आयोग को अब अंतिम कारण बताओ नोटिस जारी करना पड़ा है। नोटिस में आयोग ने चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) नियम की धारा 16 (ए) का हवाला देते हुए 20 दिनों के भीतर जवाब न मिलने पर चुनाव चिह्न और मान्यता रद्द करने की बात कही है।
आप से जुड़ी एक खबर और आई है, हालांकि इसमें उसे अदातल की ओर से राहत मिल गई है, पर यह मामला भी पार्टी और उसके मुखिया के चाल-चरित्र और नीयत पर सवाल जरूर खड़े करता है। दिल्ली हाई कोर्ट ने आप का रजिस्ट्रेशन रद्द करने के लिए चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग करने वाली याचिका को आज खारिज कर दिया। याचिका पार्टी पर पंजीकरण के लिए कथित तौर पर जाली दस्तावेजों का इस्तेमाल करने का आरोप लगाते हुए हंसराज जैन की ओर से दाखिल की गई थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि निर्वाचन आयोग ने जल्दबाजी में बिना पर्याप्त जांच के, झूठे और जाली दस्तावेजों के आधार पर किया था। जैन ने दावा था कि आप के कुछ सदस्यों ने अपने शपथ पत्रों में घर के जो पते दिए थे, मतदाता पहचान पत्र या आयकर रिटर्न से मिलान करने पर उनमें अंतर था। इसके अलावा रजिस्ट्रेशन के लिए दिए गए आवेदन पत्र में आप द्वारा भारत के राष्ट्रीय चिह्न अशोक चक्र का इस्तेमाल करने का मामला भी याचिका में उठाया है। याचिका में कहा गया है कि आप ने 3 दिसंबर 2012 को पार्टी के रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन करते वक्त अपने लेटर पैड पर अशोक स्तंभ का इस्तेमाल किया था, जोकि संविधान का उल्लंघन है क्योंकि कोई भी राष्ट्रीय चिह्न का निजी इस्तेमाल नहीं कर सकता। चुनाव आयोग ने कोर्ट को बताया था कि जरूरी दस्तावेज मिलने पर ही पार्टी के रजिस्ट्रेशन को मंजूरी दी गई है और इसमें किसी भी तरह के नियमों का उल्लंघन नहीं किया गया है। ऐसे में कोर्ट की ओर से चाचिका खारिज कर दी गई। हालांकि इसके बावजूद यह सवाल तो उठता ही है कि अगर केजरीवाल पार्टी वीआईपी कल्चर और सत्ता की सुविधाओं के खिलाफ है तो लेटर हेड में अशोक चक्र का इस्तेमाल क्यों किया गया और अगर ऐसा हुआ तो देशभर की सफाई का ठेका लेने वाले केजरीवाल ने अपने स्तर पर इसमें क्या कार्रवाई की।
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