3 मार्च 2015

सब्सिडाइज्ड खाना डकार कर देश पर एहसान कर रहे हैं हुजूर

हुजूर की महिमा निराली है और मीडिया में बैठे इनके पालतू संपादक भी हैं पूरे वफादार। रेल बजट में यात्री किराया न बढ़ाकर सीना चौड़ा किया और यूरिया से लेकर अनाज तक का भाड़ा बिना बताए ही बढ़ा दिया। आम बजट के दिन भी यह खेल उसी शातिराना अंदाज में दोहराया गया। फ्यूचरिस्टक और आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने वाले बजट का नगाड़ा पीट कर पेट्रोल 3.18 रुपये और डीजल 3.09 रुपये प्रति लीटर महंगा कर दिया। उधर चैनलों पर इनके चेले संपादक जनता को इस बहस में उलझाए रहे कि बजट कॉरपोरेट था या प्रो-पब्लिक। अगले दिन पार्टी के दशकों पुराने धारा 370 और एक विधान-एक प्रधान-एक निशान के सिंहनाद को ठंडे बस्ते में डालकर न केवल जम्मू-कश्मीर में सत्ता के भागीदार बन बैठे। उनकी गरिमामय उपस्थिति में हुए शपथ ग्रहण समारोह के महज घंटे भर बाद ही सूबे के नए दरियादिल मुखिया ‌मुफ्ती साहब ने चुनाव की सफलता का श्रेय पाकिस्तान, अलगाववादियों और आतंकवादियों को देकर इन्हें कायदे से आईना और ठेंगा एक साथ दिखा दिया। मानना पड़ेगा 56 इंच वाले यह जनाब हैं बड़े जिगरे वाले। माथे पर कोई शिकन नहीं। अगले दिन देश पर एक और अहसान करने के लिए संसद की कैंटीन में भारी सब्सिडाइज्ड रेट पर मिलने वाला खाना खाने पहुंच गए। पालतू संपादक फिर जुट गए क्या खाया, गेस्ट बुक में क्या लिखा और थाली के पैसे खुद ही दिए जैसे चमत्कारी फैक्ट चमका-चमका कर पैकेज रन कराने में। क्या मजाल कि कोई सवाल उठा दे कि तनख्वाह से लेकर माचिस खरीदने तक हर कदम पर टैक्‍स अदा करने वाले वेतन जीवी मध्य वर्गीय को सब्सिडी का सिलेंडर देने में सरकार की नानी मर रही है, तो लागत के चौथाई से भी कीमत पर ‌संसद की कैंटीन में मिलने वाला शाही खाना क्यों गटक रहे हैं जनाब? न ही यह सवाल उठा कि ट्रेनों में पूरा पैसा देकर भी यात्री कॉकरोच और फंगस वाला बेस्वाद खाना खाने को मजबूर हैं, पर माननीयों को कैंटीन में शुद्ध घी में पका हलवा और फुल क्रीम दूध में बनी फ्रूट क्रीम कैसे मिल रही है। क्वालिटी का यह प्रबंधन अगर संसद की कैंटीन में किया जा सकता है, तो रेलवे में क्यों नही?

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