17 अप्रैल 2015

‘न्यूज ट्रेडर्स’ के खिलाफ मोदी के मुंह में क्यों लगा हुआ है ताला

प्रिंट मीडिया के पत्रकारों को मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों के मुताबिक वेतन दिलाने के मसले पर मोदी सरकार मौन है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद अखबारों के ज्यादातर मालिक इसे लागू नहीं कर रहे है और ‌लागू करने वालों ने भी कमोबेश इसका मजाक बनाकर ही रखा हुआ है। कुल मिलाकर देश की सबसे बड़ी अदालत के हुक्म के बावजूद इस मामले में गजब की अराजकता की स्थिति बनी हुई है।

मीडिया घरानों और मालिकों को आए दिन कोसने और प्रेस्टीट्यूट जैसी संज्ञा देने वाले मोदी के मंत्री इस मसले पर शुतुरमुर्ग की तरह रेत में मुंह गाड़े बैठे हैं। लोकसभा चुनाव से पहले मीडिया मालिकों को ‘न्यूज ट्रेडर्स’ की संज्ञा देने और 56 इंच का सीना दिखाने वाले प्रधानमंत्री मोदी की भी इस मसले पर बोलती बंद है। दूसरी ओर कम्यूनिस्ट नेता अतुल अनजान ने इस लड़ाई में पत्रकारों का साथ देने की बात कही है। इससे निश्चित रूप से इस आंदोलन को बल मिलेगा।

मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू कराने के लिए विभिन्न मीडिया घरानों के खिलाफ लड़ रहे पत्रकारों व गैर पत्रकारों का धरना 27 अप्रैल को नई दिल्ली में जंतर-मंतर पर होने जा रहा है। अतुल कुमार अंजान ने 27 अप्रैल को जंतर-मंतर पर होने वाले धरने में शामिल होने की स्वीकृति दे दी है। हालांकि उन्होंने यह भी अंदेशा जताया है कि पत्रकार भले ही सुप्रीम कोर्ट में बड़े-बड़े अखबार मालिकों के खिलाफ लड़ रहे हैं, लेकिन जब जरूरत आएगी तो भाग खड़े होंगे।

उन्होंने आईबीएन 7 सहित पिछले कई वर्षों में नौकरी से निकाले गए पत्रकारों के मामलों की मिसाल देते हुए कि हम तो धरने पर पहुंच गए, लेकिन जिनका धरना था वो ही नहीं आए। इसलिए पत्रकार बिरादरी का अब फर्ज बनता है कि वह मजबूती के साथ आगे आकर ऐसी आशंकाओं को गलत साबित करें और बुलंदी के साथ अपने हक की आवाज उठाएं।

12 अप्रैल 2015

फ्रेंच अखबार 'ल मॉन्द' ने दिखा दिया मोदी महाशय को ठेंगा

देश के सरकारी न्यूज चैनल और रेडियो पर अपनी वाह-वाही का प्रसारण कराने वाले मोदी महाशय को फ्रांस के एक अखबार ने सीधे-सीधे ठेंगा दिखा दिया है। फ्रेंच अखबार 'ल मॉन्द' ने पेरिस में मोदी की जो किरकिरी की है उसकी ऊंचाई भीएफिल टावर से कतई कम नहीं कही जा सकती। 

दरअसल सातवें आसमान पर चल रहे सत्ता के अहंकार और पालतू संपादकों को उंगलियों के इशारे पर नचाने की आदत में मोदी जी ने फ्रांस में भी कुछ ऐसा ही करने की कोशिश कर डाली। ... बस जनाब, यहीं मात खा गया इंडिया। मोदी जी ने फ्रांस के अग्रणी अखबार 'ल मॉन्द' में अपना प्री फेब्रिकेटेड और प्लांटेड इंटरव्यू छपवाने की इच्छा जाहिर की, तो खरी-खरी सुननी पड़ गई देसी तीस मार खान को। 

दरअसल मोदी जी शायद भूल गए कि फ्रांस उनकी टेरिटरी नहीं है, जहां वह दूरदर्शन को मोदी दर्शन बना लेंगें और आकाशवाणी पर वक्त बे वक्त मोदी के ‘मन की बात’ बात बजेगी। मोदी जी को शायद यह भी याद नहीं रहा कि फ्रांस में भारत की तरह उनके कोई पद्म भूषण शर्मा जी नहीं बैठे हुए हैं, जो प्लांटेड इंटरव्यू चलाने और फर्जी अदालत लगाने में महारत रखते हों। सो अखबार ने न केवल मोदी जी का ऐसा इंटरव्यू छापने से इनकार ‌कर दिया बल्कि उसके सोशल साइट पर इसका नगाड़ा पीट कर मोदी जी की दुनिया भर में खूब भद्द भी पिटवाई। 

'ल मॉन्द' के दक्षिण एशियाई संवाददाता जूलियॉं बुविशॉ ने ट्विटर पर इस बात का खुलासा भी कर दिया। उन्होंने अपने ट्वीट में कहा है कि 'हमें बताया गया था कि नरेंद्र मोदी सवालों के जवाब लिखकर देंगे, न कि सामने बैठकर। इसलिए 'ल मॉन्द' ने इंटरव्यू से इनकार कर दिया।' इसके बाद प्रधानमंत्री कार्यालय ने दूसरे अखबार 'ल फिगार' से इस इंटरव्यू के लिए बात की।

इस तरह 'ल मॉन्द' ने एक तीर से दो नहीं, तीन शिकार कर दिखाए। उसने न सिर्फ मीडिया को मुट्ठी में समझने के मोद के गुरूर को उजागर किया, बल्कि पूर्वनियोजित या फिक्स इंटरव्यू छापने से इनकार करके अपनी साख को जनता के बीच और मजबूत कर लिया। इसके साथ ही उसने प्रतिद्वंद्वी अखबार 'ल फिगार' में छपे मोदी के इंटरव्यू की हकीकत भी दुनिया के सामने रख दी। दरअसल 'ल फिगार' 'ल मॉन्द' का प्रतिद्वंद्वी अखबार होने के साथ ही उस कंपनी दसौ का अखबार है, जो भारत को 126 रफेल लड़ाकू विमान बेचने की कोशिश कर रही है।

8 अप्रैल 2015

... और इन्होंने मीडिया को ‘तवायफ’ बना‌ दिया

नरेंद्र मोदी की सरकार चुनाव में किए गए बड़े-बड़े वायदों को निभा पाने में दस माह बाद भी भले ही मीलों पीछे खड़ी नजर आती हो, पर मोदी के विचित्र मंत्री और सांसद आए दिन नए-नए विवाद खड़े करने में जरा भी पीछे नहीं हैं। ज्यादातर विवाद मंत्रियों की बदजुबानी या बेमतलब के बयानों से पैदा हो रहे हैं।

साध्वी निरंजन ज्योति के रामजादे-हरामजादे वाले विवाद और साक्षी महाराज के बयानों के बाद अब पूर्व आर्मी चीफ और केंद्र सरकार में विदेश राज्य मंत्री वीके सिंह एक बार विवादित बयान देकर नया बखेड़ा खड़ा कर दिया है। इस बार उन्होंने मीडिया के खिलाफ विष वमन किया है। मीडिया को तुलना वेश्या से करने की नीयत से उन्होंने अंग्रेजी के प्रास्टीट्यूट शब्द की मीडिया के लिए प्रेस्टीट्यूट शब्द का इस्तेमाल किया है।

वीके सिंह ने पहले तो हिंसा में घिरे यमन से भारतीयों को निकालने के मिशन की तुलना पाकिस्तान के दूतावास में होने वाले कार्यक्रमों से की। इस तुलना पर जब विवाद हुआ तो वह मीडिया पर ही भड़क गये और मीडिया के खिलाफ आपत्तिजनक और अमर्यादित टिप्पणी की।

सोशल नेटवर्किंग साइट ट्वीटर पर वीके सिंह ने लिखा कि 'दोस्तों आप प्रेसटीट्यूट्स से और क्या उम्मीद कर सकते हैं। हैशटैग टाइम्स नाउ डिजास्टर से किए गए ट्वीट में म‌‌ीडिया के लिए जिस प्रेस्टिट्यूट्स शब्द का इस्तेमाल किया गया है, वह दरअसल प्रेस और प्रॉ‌स्टिट्यूट का जोड़ है। वीके सिंह ने ट्वीट के अगले हिस्‍से में कहा है कि अंतिम बार में अर्नब गोस्वामी ने ई के स्‍‌थान पर ओ समझ लिया था।

वीके सिंह के इस बेतुके बयान की मीडिया जगत में तीखी आलोचना हो रही है। कहा जा रहा है कि 56 इंच के सीने वाले मोदी जनता के सामने मंच पर तो बड़े शेर बनते हैं, पर अपने बड़बोले मंत्रियों की जबान पर लगाम नहीं लगा पा रहे हैं। शायद उनकी खुद की बतोले बाजी की आदत इसमें आड़े आ रही है कि जब अपनी जबान पर ही कंट्रोल नहीं जनाब का, तो दूसरों को किस मुंह से क्या कहें भला!