12 फ़रवरी 2015

अनूठा है केजरी का यह ठाकरे कनेक्‍शन

अनूठा है केजरी का यह ठाकरे कनेक्‍शन


बात अटपटी और चौंकाने वाली लगती है। शीर्षक पढ़कर लग रहा होगा कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ सत्तासीन हो रहे अरविंद केजरीवाल और उद्धव ठाकरे या राज ठाकरे के बीच किसी गुपचुप सियासी गठजोड़ का खुलासा होने वाला है। सस्पेंस यहीं खत्म करता हूं, ऐसा कुछ नहीं। बात राज ठाकरे और अरविंद केजरीवाल से जुड़ी हुई तो है, पर उनके बीच किसी गठजोड़ की नहीं, बल्‍कि केजरी की जीत पर राज ठाकरे द्वारा बनाए गए एक शानदार कार्टून की कर रहा हूं। यह बात मेरे दिमाग को इतना क्लिक इसलिए कर गई, क्योंकि यह एक साथ दो बड़े विरोधाभासों को उजागर करती है। साथ ही एक अद्भुत संभावना का दरवाजा खोलती दिखती है।
पहला विरोधाभास राज ठाकरे की इमेज, उनके बारे में पब्लिक पर्सेप्शन और उनकी अस्ल शख्सियत व बौद्धिक क्षमता के बीच नजर आता है। केजरी रूपी विमान द्वारा मोदी और अमित शाह के गगनचुंबी ट्विन टावर उड़ाने वाला यह कार्टून बड़े साफ तौर पर स्पष्ट करता है कि सियासत में जिस तरह की छिछली और जाहिलाना किस्म की बातें राज ठाकरे करते हैं, वह यकीनन उनके जहन से निकली हुई नहीं होतीं।
ठाकरे का यह बेहतरीन कार्टून उनकी दमदार कल्पनाशीलता, व्यंग्यात्मक दृष्टि और सशक्त बौद्धिक क्षमता को दर्शाता है। पिछले करीब दसेक दिन से केजरीवाल, मोदी और दिल्ली चुनाव के रंग में पूरी तरह से रंगे मीडिया ने दिल्ली के अप्रत्याशित चुनाव परिणाम को मोदी के अहंकार पर केजरीवाल की सादगी की जीत और इसी तरह की कई व्याख्याओं के साथ पेश किया। न्यूज चैनलों पर घंटे-घंटे भर की बहसें और केजरी की प्रशंसा में डूबे निबंधात्मक फीचर तो देखने को मिले, पर इतने मजेदार और चुटीले ढंग से पॉलिटकल सटायर कहीं नहीं दिखा, जैसा ठाकरे ने अपने कार्टून में किया है। इस घटना को टीवी पर आश्चर्यपूर्वक देखते ओबामा को चित्रित कर ठाकरे ने एक स्‍थानीय घटना से पूरी दुनिया को मिलने वाले संदेश को परिलक्षित कर इसे जो ग्लोबल पर्सेप्‍शन दिया है, वह काबिलेतारीफ है।
कुल मिलाकर कार्टून यह सोचने को मजबूर करता है कि काश राज ठाकरे सियासत में न होकर कार्टूनिंग के क्षेत्र में ही हाथ आजमाते, तो वह देश-समाज को नफरत और नकारात्मकता के बजाय काफी सृजनात्मक और सकारात्मक दे सकते थे। वह राज ठाकरे के सियासी वारिस के बजाय कार्टूनिस्ट बाल ठाकरे के सुयोग्य वारिस साबित हो सकते थे। बहरहाल, ख्वाम ख्याली ही सही, पर मैं सोचता हूं कि महाराष्ट्र के विधानसभा में राजनीतिक रूप से पूरी तरह पैदल हो चुके सियासत राज ठाकरे भविष्य में अगर अपने अंदर छिपे इस शानदार कलाकार को आगे बढ़ाएं, तो यह देश और उनके दोनों ही के लिए काफी अच्छा हो सकता है।
पूरे प्रकरण से एक विरोधाभास यह स्पष्ट भी होता है कि मोदी, राज और यहां तक कि उद्धव ठाकरे, तीनों ही ऊपरी तौर पर तो कट्टरता की एक ही सियासी कश्ती में सवार तो दिखते हैं, पर वास्तव में यह एक-दूसरे को फूटी आंख भी नहीं सुहाते, क्योंकि केजरी की जीत के बहाने राज और उद्धव ने मोदी पर तीखे व्यंग्य बाण छोड़ने का मौका कतई नहीं गंवाया। जाहिर है कि हिंदुत्व और प्रखर राष्ट्रवाद के इस मठ में सबके अपने-अपने खेमे हैं और मौका मिलते ही यह किलेदार एक दूसरे पर तोप दागने से चूकने वाले नहीं। हिंदू राष्ट्र का दिवास्वप्न यह केवल सोची-समझी साजिश के तहत जनता के एक बड़े तबके को दिखाते हैं अपनी सियासी रोजी-रोटी चलाने के लिए।

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