ठीक बात कही आपने रवीश भाई ! वैसे गहराई में जाकर देखें तो ऐसी सारी बेतुकी कवायदों की जड़ में आदमी का लालच ही नजर आता है । वह कहीं कोई मौका छोड़ना ही नहीं चाहता । अपना हित साधने का । ‘ थिंक पाजिटिव ’ वाहे हमारे कुछ बिरादर हमें छिद्रान्वेशी करार देते हुए इसका सकारात्मक पक्ष देखने की सलाह दे सकते हैं । वह कह सकते हैं कि यह तो फालतू समय का सदोपयोग हो रहा है । इससे तो लोगों में जागरूकता ही बढ़ेगी आदमी हर पल हर खबर से बाखबर रहेगा । शायद यह सकारात्मक हो भी सकता था, गोया कि हवाई अड्डों के मुत्तीखाने के बजाए अखबार वाले भाई लोग किसी दूरदराज के गांव में जाकर मुफ्त अखबार बांट देते । उन लोगों को जिनमें दुनिया को देखने जानने की जिज्ञासा और तमन्ना तो है, पर जेब में इतने पैसे नहीं कि तीन-चार रुपये का ‘महंगा’ जी अखबार खरीद सकें । महंगा शब्द का इस्तेमाल हमारे ‘ थिंक पाजिटिव ’ क्लब के साथियों को शायद यहां अटपटा लगे क्योंकि जीवन की सारी सुविधाओं और आसान सी जिंदगी में पाजिटिव थिंकिंग करने वाले इन जीवों को शायद अहसास न हो कि इस धरती पर और हमारे देश में ही बहुत बड़ी तादाद में ऐसे लोग हैं जो अखबार खरीदने की लग्जरी अफोर्ड नहीं कर सकते ।
अब जरा विचार करें समय के सदुपयोग के तर्क की । तो हमारा तो यही कहना है कि ऐसा भी समय का क्या सदुपयोग कि आदमी के पीछे-पीछे पाखाने में घुसे जा रहे हो अखबार लेकर । इन दो-चार मिनटों का सदुपयोग करके क्या टायलेट जाने वाले हर आदमी को बिल गेट्स या ओबामा बना दोगे ! भइया कहीं तो दो पल का सुकून ले लेने दो आदमी को । कल को नया आविष्कार कर दोगे कि सोते आदमी की नसों में ड्रिप खोंस के सोते में भी उसके तंत्रिका तंत्र के जरिए खबरें और विज्ञापन दिखाने लगोगे और कहोगे कि यह तो समय का सदुपयोग है । जो सोया, सो खोया, जो जागा सो पाया । समय का ‘सदुपयोग’ करने वालों कहीं तो बख्श दो आदमी को यार । नीत्ज़े ने सच ही कहा था कि नो न्यूज इज गुड न्यूज । वाकई खबर और खबरों के सहारे विज्ञापन का कारोबार करने वाले यह समाज के ‘पहरुए’ आदमी पर सूचनाओं की बेतहाशा बौछार कर उसकी जान लेने पर उतारू हैं ।
मीडिया विमर्श
kahi to baksh do yaar .bahut khoob swagat hai blog pe .
जवाब देंहटाएंअख़बार अब आम नही खास लोगो के लिये निकाला जाता है।ये गांव के लोगो की खेती के लिये नही शहर के रईसो के किच्न गार्डन और फ़ार्म हाऊसो की तस्वीरे छापता है।गांव के स्कूलो की बदहाली की बजाये पब्लिक स्कूलो के नतीजे छापकर उसकी दलाली करता है। और ये खबरे जिनके लिये छाप रहा है उन तक़ नही पहूंची तो फ़िर फ़ायदा क्या है।इनका बस चले तो ये लोग खुद जाकर कथा-पुराण की तरह बड़े लोगो के घर जाकर समाचार वाचन भी करने लग जायें।ये कंही बख्शने वाले नही है।बहुत सटीक लिखा है।
जवाब देंहटाएंnarayan narayan
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है....
जवाब देंहटाएंचिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
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