3 जून 2009

क़ाफिले
क़ाफिले दोस्तों के क्या देंगे,
घाव पर घाव इक नया देंगे/
इस भरोसे पे चोट खाए चलो,
ज़ख्म अपने ही हौसला देंगे/
क़ाफिले दोस्तों के क्या देंगे,

अब तो हर ओर,
वही इक फरेब का मंजर/
मीठी मुस्कानों पर,
लिपटे हुए खूनी खंजर/
चलो, किसी को जहां में,
मेरी तलाश सही/
अजीज मैं न सही,
फिर कि लाश सही,
उनकी इस तिश्नगी पर हम,
अपना लहू बहा देंगे/
क़ाफिले दोस्तों के क्या देंगे
- कौस्तुभ

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