लेमार्क तुम गलत थे
और तुम्हारी ही तरह झूठा था
‘ अंगों की उपियोगिता ’ का वह सिद्धांत
कि विलुप्त हो जाते हैं अनुपयोगी अंग
और उपियोगियों का होता है भरपूर विकास
ऐसा होता हकीकत में अगर
क्यों विलुप्त हो जाती सदियों पहले,
आदमी के शरीर से दुम
दुम जिसकी पड़ती है जरूरत
जिंदगी में हर कदम
दफ्तर-घर-समाज हर जगह
‘ मालिक ’ बदल जाता है
आदमी वही रहता है हर जगह
दुम हिलाता सा उसी तरह ।
लेमार्क तुम गलत थे- - -
कि विकसित हो गई आदमी के जिस्म में,
बेवजह एक अदद रीढ़
रीढ़, जिसकी कहीं भी कोई जरूरत नहीं
दफ्तर में, घर में, समाज में कहीं नहीं
कि बेदम रेंगता रहता है इंसान
पैरो तले मसलने वाले बदल जाते हैं
पर रहता वही है पिसता-कराहता आदमी
हर वक्त, हर जगह, हर तरह
- - - लेमार्क तुम गलत थे ।
आज के मायनो में तो लेमार्क बिल्दुल गलत साबित हो गए है..उपयोगिता या अनुपयोगिता तो गए ज़माने की बात हो गयी है...
जवाब देंहटाएंलैमार्क तो गलत है हीं -फिर से आपने याद दिला दिया !
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