क़ाफिले दोस्तों के क्या देंगे,
घाव पर घाव इक नया देंगे ।
इस भरोसे पे चोट खाए चलो,
ज़ख्म अपने ही हौसला देंगे ।
क़ाफिले दोस्तों के क्या देंगे- - -
वो मसाहत का दम जो भरते हैं
जान हम पल लुटाए फिरते हैं
खुद ही तोड़ेंगे क़यामत इक दिन
हंस के सूली हमे चढ़ा देंगे ।
फिर करीने से मुस्करा देंगे
क़ाफिले दोस्तों के क्या देंगे- - -
अब तो हर ओर,
वही इक फरेब का मंजर ।
मीठी मुस्कानों में,
लिपटे हुए खूनी खंजर ।
चलो ! किसी को जहां में,
मेरी तलाश सही ।
अजीज मैं न सही,
फिर कि लाश सही,
उनकी इस तिश्नगी पर,
हम अपना लहू बहा देंगे ।
क़ाफिले दोस्तों के क्या देंगे
ज़ख्म अपने ही हौसला देंगे ।
जवाब देंहटाएंअच्छी पंक्ति। सुन्दर प्रस्तुति। वाह।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
अपने ब्लॉग की कलर स्कीम बदलिए। एकदम पढ़ने में नहीं आती। आंख दर्द होने लगती है।
जवाब देंहटाएंक्या आप इलाहाबाद से है ?
जवाब देंहटाएंयदि हाँ तो अपना संचिप्त परिचय देने की कृपा करिए
venuskesari@gmail.com
वीनस केसरी (मुट्ठीगंज, इलाहाबाद)