9 जून 2009

क़ाफिले दोस्तों के

क़ाफिले दोस्तों के क्या देंगे,
घाव पर घाव इक नया देंगे ।
इस भरोसे पे चोट खाए चलो,
ज़ख्म अपने ही हौसला देंगे ।
क़ाफिले दोस्तों के क्या देंगे- - -

वो मसाहत का दम जो भरते हैं
जान हम पल लुटाए फिरते हैं
खुद ही तोड़ेंगे क़यामत इक दिन
हंस के सूली हमे चढ़ा देंगे ।
फिर करीने से मुस्करा देंगे
क़ाफिले दोस्तों के क्या देंगे- - -

अब तो हर ओर,
वही इक फरेब का मंजर ।
मीठी मुस्कानों में,
लिपटे हुए खूनी खंजर ।
चलो ! किसी को जहां में,
मेरी तलाश सही ।
अजीज मैं न सही,
फिर कि लाश सही,
उनकी इस तिश्नगी पर,
हम अपना लहू बहा देंगे ।
क़ाफिले दोस्तों के क्या देंगे

3 टिप्‍पणियां:

  1. ज़ख्म अपने ही हौसला देंगे ।

    अच्छी पंक्ति। सुन्दर प्रस्तुति। वाह।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  2. अपने ब्लॉग की कलर स्कीम बदलिए। एकदम पढ़ने में नहीं आती। आंख दर्द होने लगती है।

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  3. क्या आप इलाहाबाद से है ?
    यदि हाँ तो अपना संचिप्त परिचय देने की कृपा करिए
    venuskesari@gmail.com
    वीनस केसरी (मुट्ठीगंज, इलाहाबाद)

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