3 जून 2009

चेहरों पर मुस्कान,
दिलों में कोलाहल है
भीतर-भीतर आग,
सुलगती पल-प्रतिपल है
नौटंकी के भांड सरीखे
हम भी, तुम भी
रचा रहे हैं स्वांग
कि सबकुछ कुशल-कुशल है
चेहरों पर मुस्कान....

खंजर है हर हाथ,
हर कोई हत्यारा है
कत्ल किये अरमान,
वेदना को मारा है
फिर भी दामन साफ,
भंगिमा शांत-शांत सी
रूह स्याह है,
काया कैसी शुभ्र-धवल है
चेहरों पर मुस्कान....
- कौस्तुभ

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें