21 जून 2009

तो इस लिए है सुअर घिनौना ।

स्वाइन फ्लू की खबर पढ़ते हुए मन ख्याल आया कि - - -तो इस लिए सुअर का मांस खाने को बुरा माना जाता है । पर अगले ही पल दूसरा सवाल उठा कि स्वाइन फ्लू की बीमारी तो हाल के वर्षों में ही सामने आई है, पर सुअर के मीट को लेकर कई देशों और संस्कृतियों में घृणा सदियों पहले से है । इस्लाम में तो शुरू से ही न केवल सुअर का मांस खाना मना है, बल्कि इसे कुफ्र या पाप माना जाता है । बात इस्लाम तक पहुंची तो सहसा ही आइडिया आया कि क्यों न इसकी वजह भी इस्लाम की ही किसी किताब में ढूंढी जाए ! याद आया कि पुस्तक मेले में लगे स्टाल से एक बार जाकिर नाइक की कुछ किताबें ली थीं । ली क्या थी, मुफ्त बंट रही थीं सो उठा लाया था । एकाध अध्याय पढ़ने के बाद रोजमर्रा की जद्दोजहद में किताब किनारे लगी तो फिर सेल्फ में ही रखी रह गई । आज स्वाइन फ्लू ने बरबस ही उसकी याद दिला दी । देखा तो संयोग से उसमें इस सवाल का जवाब मिल गया । सुअर के मांस के निषेध के किताब में दो मुख्य कारण बताये गए हैं । एक कारण तो आमतौर पर लोगों को पता ही होगा कि हमारे इर्द-गिर्द पाए जाने वाले जानवरों में सुअर ही एक ऐसा प्राणी है जो अपना मल भी खा जाता है । उसके इस गंदे खान-पान और रहन-सहन के चलते उसके पेट में तमाम तरह के कीड़े या कृमि और कीटाणु-जीवाणु आदि पाए जाते हैं । पश्चिमी जगत में मान्यता है कि मांस को अगर अच्छी तरह से पका दिया जाए तो यह सभी कीटाणु, जीवाणु और कृमि मर जाते हैं, पर हाल के वैज्ञानिक शोधों में पता चला है कि बहुत से कीटाणु-जीवाणु ऐसे भी होते हैं जो खौलते पानी तक में जिंदा रह सकते हैं । इसके विपरीत शून्य से दस डिग्री नीचे तक के तापमान में यानि पानी को जमा कर बर्फ बना देने के बाद भी कई जीवाणु-कीटाणु जीवित रहते हैं । सुअर का मीट खाने पर यही जीवाणु तमाम बीमारियों का वाहक बन कर हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और हमें बीमार कर देते हैं । इस वैज्ञानिक तथ्य के सामने आने के बाद सार्सेज के शौकीनों ने इसके जवाब में एक नया तर्क पेश कर दिया कि बीमारी फैलाने वाले जीवाणु तो गंदी तरह रहने-खाने के चलते सुअर के शरीर में पनपते हैं, अगर उन्हें सफाई से रखा जाए और हाईजेनिक ढंग से पाला जाए तो सार्सेज खाने में कोई हर्ज नहीं है । यह बात उपरी तौर पर सही लग सकती है पर पूरी तरह ठीक नहीं क्योंकि लाख सफाई रखने और अच्छा खाना देने पर भी इनपर पूरी तरह नियंत्रण नहीं रखा जा पाता । अपने नैसर्गिक स्वभाव के चलते बाड़े में मौका लगते ही यह एक-दूसरे का या अपना मल खा ही जाते हैं । इस तरह बडे़-बड़े फार्म हाउसों में पूरी सफाई से पाने जाने वालू सुअरों का मांस भी आप बेफिक्र होकर नहीं खा सकते ।
यह तो हुई समस्या की वैज्ञानिक व्याख्या । इसके अलावा सुअर का मीट खाना मना होने का एक नैतिक कारण भी किताब में बताया गया है । वह कारण यह है कि सुअर ही एक ऐसा प्राणी है जो अपने साथियों को अपनी संगिनी के साथ संभोग करने के लिए स्वयं आमंत्रित करता है, बाकी कोई भी जीव ऐसा काम नहीं करता । यह दूसरा कारण मेरे लिए एक नई जानकारी थी । अगर यह हकीकत है तो इसके कारणों आदि पर व्यापक वैज्ञानिक की शोध की जरूरत है । शायद इसी कारण से सुअर को घिनौनेपन की मिसाल माना जाता है ।

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